क्या है उल्टी यात्रा बुढ़ापे से बचपन की तरफ़ जानिए राकेश मिश्रा के साथ इस पूरी रिपोर्ट में
क्या है उल्टी यात्रा बुढ़ापे से बचपन की तरफ़ जानिए राकेश मिश्रा के साथ इस पूरी रिपोर्ट में
*देवरिया से ब्यूरो चीफ पवन यादव*
देवरिया।समाज में बुध्दिजीवी लोगों की कमी नहीं है, केवल उनसे संपर्क नहीं हो पाता है। उनमें से एक तत्कालीन बड़ौदा यूपी बैंक बनकटा के मैनेजर राकेश मिश्रा जी से भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार समन्वय समिति एवं सोसल मीडिया पत्रकार महासंघ के वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष कुमार प्रसाद गोंड की मुलाकात हुई, और उनसे बहुत कुछ वार्ता करने के बाद उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि, देखिए मैं आप को इस उम्र से लेकर बचपन की तरफ़ लेकर चलता हूं, जो 50 को पार कर गये है,या करीब है, उनके लिए खास है। मेरा मानना है, कि दुनिया में जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है। हमारे बाद की किसी पीढ़ी को "शाय़द ही" इतने बदलाव देख पाना संभव हो।हम वो आखिरी पीढ़ी है, जिसने बैलगाड़ी से लेकर सुपर सोनिक जेट देखे हैं। बैरंग खत से लेकर लाइव चैटिंग तक देखा है। और "वर्चुअल मीटिंग जैसी"असंभव लगने वाली बहुत सी बातों को सम्भव होते हुए देखा है।हम वो पीढ़ी है, जिन्होंने कई -कई बार मिट्टी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनी है। ज़मीन पर बैठ कर खाना खाया है।प्लेट में डाल-डाल कर चाय पी है।हम वो लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदान में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली- डंडा, छुपा -छिपी, खो- खो, कबड्डी,कांचे जैसे खेल, खेलें हैं।हम आखिरी पीढ़ी के वो लोग हैं। जिन्होंने चांदनी रात में डीबरी, लालटेन या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है। और दिन के उजाले में चादर के अन्दर छिपा कर नावेल पढ़ें है।हम वहीं पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने अपनो के लिए अपने जज्बात खतो में आदान-प्रदान किये है। और उन खतो के पहुंचने और जवाब के वापस आने में महिनों तक इन्तजार किया है।हम उसी आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कूलर,एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुजारा हैं। और बिजली के बिना भी गुज़ारा किया है।हम वो आखरी लोग हैं, जो अक्सर अपने छोटे बालों में सरसों का ज्यादा तेल लगाकर स्कूल और शादियों में जाया करते थे।हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दवात या पेन से कापी किताबें, कपड़े और हाथ काले नीले किये है।तख्ती पर सेठे की क़लम से लिखा है, और तख्ती धोई है।हम वो आखरी लोग हैं। जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है। और घर में शिकायत करने पर फिर मार खाई है। और जो मोहल्ले के बुजुर्गों को दूर से देख कर नुक्कड़ से भाग कर घर आ जाया करते थे। और समाज के बड़े बूढ़े की इज्ज़त डरने की हद तक करते थे। जिन्होंने अपने स्कूल के सफेद केनवास शूज पर खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया है। जिन्होंने गुड़ की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है। और कभी कभी तो नमक से या लकड़ी के कोयले से दांत साफ किए हैं। जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की खबरें,विविध भारती,आल इंडिया रेडियो,बिनाका गीत माला और हवा महल जैसे प्रोगाम पूरी शिद्दत से सुनें है।जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफेद चादर बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बनें सोते थे।वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसी कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुजरते हैं। जिन्होंने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखें है, जो लगातार कम होते चले गए। अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी,बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलापन व निराश में खोते जा रहे हैं। जिन्होंने रिस्तो की मिठास महसूस की है। और हम दुनिया के वो लोग भी हैं, जिन्होंने एक ऐसा "अविश्वसनीय सा"लगने वाला नजारा देखा है। आज के इस कोरोना काल में परिवारिक रिस्तेदारो (बहुत से पति-पत्नी,मां बाप,बेटा,भाई बहन आदि) को एक दूसरे को छूने से डरते हुए भी देखा है। पारिवारिक रिस्तेदारो की तो बात ही क्या करें खुद आदमी को अपने ही हाथ से, अपने ही नाक और मुंह को छूने से डरते हुए भी देखा है।"अर्थी"को बिना चार कंधों के श्मशान घाट पर जातें हुए भी देखा है। "पार्थिव शरीर" को दूर से ही"अग्नि दाग"लगाते हुए भी देखा है।हम आज के भारत की एकमात्र वह पीढ़ी हैं जिसने अपने"मां-बाप"की बात भी मानी और "बच्चों"की भी मान रहे हैं। शादी में (buffet) खाने में वह आंनद नहीं जो पंगत में आता था। जैसे,सब्जी देने वाले को गाइड करना,हिला के दे या तरी तरी देना। उंगलियों के इशारे से दो लड्डू और गुलाब जामुन, काजू कतली लेना।पूडी छांट छांट के और गरम गरम लेना। पीछे वाली पंगत में झांक कर देखना क्या क्या आ गया, अपने इधर क्या बाकी है। और जो बाकी है, उसके लिए आवाज लगाना पास वाले रिश्तेदार के पतल में जबरदस्ती पूड़ी रखवाना रायते वाले को दूर से आता देखकर फटाफट रायते का दोना पीना। पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी, उसके हिसाब से बैठने की पोजीशन बनाना। और आखिर में पानी वाले को खोजना।उसको उसका बचपन जरूर याद आयेगा,वो आप की वजह से अपने बचपन में चला जायेगा, चाहें कुछ देर के लिए ही सही। और ये आपकी तरफ से उसको सबसे अच्छा गिफ्ट होगा, और यह सिलसिला चलता रहे।
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