यूपी का वो डॉन जिसने पुलिस स्टेशन में किया था बीजेपी नेता का मर्डर, पढ़ी विकास दुबे की 'खूनी कुंडली'
1980 और 90 के दशक के दशक में उत्तर प्रदेश में जातिवाद की राजनीति हावी थी। ऐसे में अपर कास्ट और लोअर कास्ट के बीच झड़प आम बात थी। 1990 में विकास 20 साल का था। और यही से शुरू होते हैं विकास दुबे की पूरी कहानी, उसी साल पहली बार विकास पर दूसरे जाति के लोगों को मारने का आरोप लगाया गया था। विकास की दलील थी कि ये सबने उनके पिता का अपमान किया था। मामला थाने पहुंचा। लेकिन किसी स्थानीय नेता ने पुलिस पर दवाब बनाया और विकास दुबे छूट गया।
जिसके बाद विकास दुबे के हौसले बुलंद होते हैं और वह जुर्म के दलदल में घुसता चली जाती है साल 1991 में विकास के खिलाफ पहली बार भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (मान कर किसी को चोट पहुंचाने का आरोप) के तहत आपराधिक मुकदमा चला। एक साल बाद ही 1992 में विकास ने दो दलितों की हत्या कर दी। कानपुर के चौबेपुर थाने में उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। गिरफ्तारी के बाद उसे जेल भेज दिया गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वह जमानत पर छूट गया। इसके बाद तो उन्होंने जाति के कुछ लोगों के बीच हूर बन गए
जिसके बाद डॉन बना नेता वाली कहानी शुरू होती है और वर्ष 1992 के बाद अगले 4 साल तक विकास अपने क्षेत्र में नेता के तौर पर उभरने लगा। हर छोटे-बड़े चुनावों में राजनीतिक दल उसे याद करने लगे। बड़े अधिकारियों से लेकर सरकारी ऑफिसर और फिर बड़े पुलिस अधिकारी हर जगह विकास ने पैठ बना ली। वर्ष 1996 में वे बीपीपी में शामिल हो गए। शिवली और उसके आस पास के इलाकों में उसका दबदबा हो गया उन दिनों हरिकिशन श्रीवास्तव का काफी करीबी माना जाता था।
वर्ष 2000 के बाद से तो विकास दुबे डॉन बन गया। उन्होंने शिवली कस्बे में तारा चंद इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडे को गोली मार दी। ये सनसनीखेज हत्या एक जमीन के विवाद को लेकर हुई थी। उसके बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया था उसके बाद साल 2001 में विकास दुबे ने बीजेपी के सीनियर नेता संतोष शुक्ला की शिवली पुलिस स्टेशन के अंदर ही हत्या कर दी। उन दिनों केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कहा जाता है कि हरिकिशन श्रीवास्तव और संतोष शुक्ला के बीच राजनीतिक लड़ाई के चलते उन्होंने ये आदेश दिया। पुलिस स्टेशन में हत्या को अंजाम देने के बाद भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। आखिरकार कोर्ट ने सरेंडर किया।
विकास दुबे इसके बाद कोर्ट कचहरी के चक्कर काटता रहा। इस दौरान उसके खिलाफ 60 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए। विकास ने राजनीति की मदद से पूरे सबूत दिए हैं। केस के सारे गवाह मुकर गए। यहां तक कि पुलिस वालों ने कहा कि उसने विकास को पुलिस स्टेशन के अंदर गोली चलाने नहीं देखा। संतोष शुक्ला मर्डर केस से वह बरी हो गया है।
और तारा चंद इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडे को गोली मारने के मामले में विकास को सजा मिली। लेकिन बाद में इलाहबाद हाईकोर्ट ने उसकी सजा पर ही रोक लगा दी थी।
मार्च 2017 में, उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। उन्होंने जल्द ही केवल संगठित अपराध और माफिया के खिलाफ कठोर नीति घोषित की। जल्द ही प्रदेश में एनकाउंटर एक आम बात हो गई। एसटीएफ ने विकास दुबे को गिरफ्तार भी किया। लेकिन एक बार फिर वो जमानत पर रिहा हो गए।
सूत्रों के मुताबिक विकास दुबे बीजेपी में शामिल होने की कोशिश कर रहा था। बीजेपी के कुछ नेता उनका समर्थन कर रहे थे। लेकिन दिल्ली में कुछ वरिष्ठ नेताओं ने बैठे हुए आवाज़ उठाई दी। कहा जा रहा है कि संतोष शुक्ला से बीजेपी के एक नेता का परिवारिक संबंध है और उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया। यूपी का वो डॉन जिसने पुलिस स्टेशन में किया था बीजेपी नेता का मर्डर, पढ़िए विकास दुबे की 'कुंडली'
1980 और 90 के दशक के दशक में उत्तर प्रदेश में जातिवाद की राजनीति हावी थी। ऐसे में अपर कास्ट और लोअर कास्ट के बीच झड़प आम बात थी। 1990 में विकास 20 साल का था। और यही से शुरू होते हैं विकास दुबे की पूरी कहानी, उसी साल पहली बार विकास पर दूसरे जाति के लोगों को मारने का आरोप लगाया गया था। विकास की दलील थी कि ये सबने उनके पिता का अपमान किया था। मामला थाने पहुंचा। लेकिन किसी स्थानीय नेता ने पुलिस पर दवाब बनाया और विकास दुबे छूट गया।
जिसके बाद विकास दुबे के हौसले बुलंद होते हैं और वह जुर्म के दलदल में घुसता चली जाती है साल 1991 में विकास के खिलाफ पहली बार भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (मान कर किसी को चोट पहुंचाने का आरोप) के तहत आपराधिक मुकदमा चला। एक साल बाद ही 1992 में विकास ने दो दलितों की हत्या कर दी। कानपुर के चौबेपुर थाने में उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। गिरफ्तारी के बाद उसे जेल भेज दिया गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वह जमानत पर छूट गया। इसके बाद तो उन्होंने जाति के कुछ लोगों के बीच हूर बन गए
जिसके बाद डॉन बना नेता वाली कहानी शुरू होती है और वर्ष 1992 के बाद अगले 4 साल तक विकास अपने क्षेत्र में नेता के तौर पर उभरने लगा। हर छोटे-बड़े चुनावों में राजनीतिक दल उसे याद करने लगे। बड़े अधिकारियों से लेकर सरकारी ऑफिसर और फिर बड़े पुलिस अधिकारी हर जगह विकास ने पैठ बना ली। वर्ष 1996 में वे बीपीपी में शामिल हो गए। शिवली और उसके आस पास के इलाकों में उसका दबदबा हो गया उन दिनों हरिकिशन श्रीवास्तव का काफी करीबी माना जाता था।
वर्ष 2000 के बाद से तो विकास दुबे डॉन बन गया। उन्होंने शिवली कस्बे में तारा चंद इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडे को गोली मार दी। ये सनसनीखेज हत्या एक जमीन के विवाद को लेकर हुई थी। उसके बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया था उसके बाद साल 2001 में विकास दुबे ने बीजेपी के सीनियर नेता संतोष शुक्ला की शिवली पुलिस स्टेशन के अंदर ही हत्या कर दी। उन दिनों केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कहा जाता है कि हरिकिशन श्रीवास्तव और संतोष शुक्ला के बीच राजनीतिक लड़ाई के चलते उन्होंने ये आदेश दिया। पुलिस स्टेशन में हत्या को अंजाम देने के बाद भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। आखिरकार कोर्ट ने सरेंडर किया।
विकास दुबे इसके बाद कोर्ट कचहरी के चक्कर काटता रहा. इस दौरान उसके खिलाफ 60 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किए गए. विकास ने राजनीति दलों की मदद से सारे सबूत मिटा दिए. केस के सारे गवाह मुकर गए. यहां तक कि पुलिस वालों ने कहा कि उसने विकास को पुलिस स्टेशन के अंदर गोली चलाते नहीं देखा. संतोष शुक्ला मर्डर केस से वह बरी हो गया.
और तारा चंद इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडे को गोली मारने के केस में विकास को सजा मिली. लेकिन बाद में इलाहबाद हाईकोर्ट ने उसकी सजा पर ही रोक लगा दी.
मार्च 2017 में, उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. उन्होंने जल्द ही संगठित अपराध और माफिया के खिलाफ कठोर नीति घोषित की. जल्द ही प्रदेश में एनकाउंटर एक आम बात हो गई. एसटीएफ ने विकास दुबे को गिरफ्तार भी किया. लेकिन एक बार फिर वो जमानत पर रिहा हो गया.
सूत्रों के मुताबिक विकास दुबे बीजेपी में शामिल होने की कोशिश कर रहा था. बीजेपी के कुछ नेता उनका समर्थन कर रहे थे. लेकिन दिल्ली में बैठे कुछ सीनियर नेताओं ने उसके खिलाफ आवाज़ उठा दी. कहा जा रहा है कि संतोष शुक्ला से बीजेपी के एक नेता का परिवारिक रिश्ता है और उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया.



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